वाराणसी ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में मुस्लिम पक्ष के बाद हिन्दू पक्ष का आया बयान  , स्वामी जितेंद्रानंद ने कहा  की  सर्वे कानून  के मुताबित 

varanasi वाराणसी के जिला न्यायालय ने शृंगार गौरी विवाद में ज्ञानवापी मस्जिद की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी लिए एक टीम गठित की। है जो 6 मई को विवादित परिसर में जाकर वीडियोग्राफी और सर्वेक्षण का कार्य करेगी। मुस्लिम पक्ष कह रहा है कि

वाराणसी ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में मुस्लिम पक्ष के बाद हिन्दू पक्ष का आया बयान  , स्वामी जितेंद्रानंद ने कहा  की  सर्वे कानून  के मुताबित 
varanasi वाराणसी के जिला न्यायालय ने शृंगार गौरी विवाद में ज्ञानवापी मस्जिद की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी लिए एक टीम गठित की। है जो 6 मई को विवादित परिसर में जाकर वीडियोग्राफी और सर्वेक्षण का कार्य करेगी। मुस्लिम पक्ष कह रहा है कि वे लोग अदालत द्वारा नियुक्त की गई सर्वे टीम को मस्जिद में घुसने नहीं देंगे। अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी (जो कि मस्जिद की व्यवस्था देखती है) का सचिव एसएम यासीन खुलेआम कह रहा है कि वीडियोग्राफी और सर्वेक्षण के लिए किसी को मस्जिद के अंदर घुसने नहीं देंगे। हिन्दू लोग शृंगार गौरी के बहाने ज्ञानवापी मस्जिद में घुसना चाहते हैं।

ऐसा नहीं है कि विवादित परिसर का सर्वेक्षण पहली बार हो रहा है। 1937 में बनारस के तत्कालीन सिविल जज एसबी सिंह ने एक नहीं बल्कि दो बार मस्जिद परिसर और आस-पास का स्वयं निरीक्षण किया था। पहली बार सम्बन्धित मुकदमें की सुनवाई से पहले और दूसरा निरीक्षण फैसला सुनाने के पूर्व किया गया था।

उसी मुकदमे में अंग्रेजी सरकार ने दो विशेषज्ञों इतिहासकार डॉ. परमात्मा सरन और इतिहासकार डॉ. एएस अल्टेकर को अदालत में गवाह के तौर पर प्रस्तुत किया था। इन दोनों ने भी ज्ञानवापी मस्जिद परिसर, मस्जिद के नीचे स्थित तहखाने और पश्चिमी दीवार में प्राचीन मन्दिर के भगनवशेषों का विस्तार से सर्वेक्षण और अध्ययन किया था।

इन दोनों इतिहासकारों की गवाही पर आपत्ति जताते हुए मुस्लिमा पक्ष ने अदालत से कहा था कि यदि विशेषज्ञों की आवश्यकता है तो सरकार की बजाय अदालत अपनी तरफ से विशेषज्ञों को नियुक्त कर सकती है। उस समय यह स्वीकार्य था तो आज अदालत द्वारा नियुक्त सर्वे टीम पर आपत्ति ज्यों की जा रही है? एसएम यासीन कह रहा है कि बैरिकेडिंग के अन्दर सर्वेक्षण करने के लिए हम किसी को घुसने नहीं देंगे। अरे जनाव जिस

बेरिकेडिंग की बात कर रहे हो वो बैरिकेडिंग तो 90 के दशक में वहाँ डाली गई है। वैरिकेडिंग के अन्दर मस्जिद की पश्चिमी दीवार

जिसमें प्राचीन मंदिर के भगनवशेष हैं, के ही एक भाग में शृंगार गौरी की पूजा की जाती है। वह हिस्सा कुछ ही दिनों पहले

चैरिकेडिंग से बाहर किया गया है। इस विवाद का निपटारा बिना भगनवशेषों के सर्वेक्षण के नहीं हो सकता।

इसीलिए अदालत का आदेश वैरिकेडिंग के अन्दर या बाहर का नहीं बल्कि आराजी संख्या 9130 के सर्वेक्षण और

वीडियोग्राफी का है। इस आराजी संख्या के अन्तर्गत जो कुछ भी स्थित है, उसका सर्वेक्षण और वीडियोग्राफी की जानी है।

अदालत में तो आप यह कहते हो कि मस्जिद में किसी को केवल गैर मुस्लिम होने के आधार पर जाने से नहीं रोका जा सकता लेकिन अब अदालत के बाहर चैनलों पर कह रहे हो कि मस्जिद के अंदर मुसलमानों और सुरक्षाकमियों के अतिरिक्त कोई नहीं जा सकता। हम अदालत के आदेश पर गठित टीम को भी मस्जिद के अंदर घुसने नहीं देंगे।

सवाल ये है कि देश संविधान के आलोक में अदालत के निर्णयों से चलेगा या फिर एसएम यासीन की गुडई से चलेगा। भड़काऊ बयानों से देश का वातावरण बिगाड़ने और अदालत की अवमानना के लिए एसएम यासीन को तत्काल गिरफ्तार कर जेल भेजा जाना चाहिए। साथ ही राज्य सरकार, जिला प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन को होलाहवाली करने की बजाय 6 मई, शुक्रवार

के दिन सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था करते हुए सर्वेक्षण का कार्य पूरा कराना चाहिए।

नेहा द्विवेदी  की रिपोर्ट 

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